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गीता राठौर "गीत"(गीतकार) |
छंद मनहरण घनाक्षरी:-
वृंद भंवरों के बृंद तितलियों के गाने लगे
आ गया वसंत फिर छाई खुशहाली है
सुमन सुगंधित बयार मन भावनी है
पीली सरसों पे हरी हरी हरियाली है
उर में उमंग रंग प्रीत का चढ़ाने वाली
कोयल की मीठी तान शान मतवाली है
देता प्रेम का संदेश आ गया है ऋतुराज
यही तो संदेश देश का प्रभावशाली है
गीता राठौर "गीत"
गीतकार
शहर -पीलीभीत ,पूरनपुर ,उत्तर प्रदेश
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अभिषेक मिश्रा सचिन
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मेरी फ़ितरत में सनम बेवफ़ाई नहीं !
तेरी तस्वीर अब तक फोन हटाई नहीं !!
बस इसी बात से ये दिल मेरा परेशान है!
तेरे बाद किसी और से नजरें मिलाई नहीं !!
तू करे याद मुझको या ना करे सनम !!
मगर मैंने कभी भी तेरी बातें भूलाई नहीं!!
मेरी किस्मत में शायद तेरी जुदाई सही!
मैं अगर गलत हूं तो गलत ही सही!
क्या यार तुझ में कोई बुराई नहीं!!
मेरी फितरत में सनम बेवफाई नहीं !!
तेरी तस्वीर अब तक फोन से हटाई नहीं!!
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*शायर✍*
*अभिषेक मिश्रा सचिन*
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मनोज मंजुल (ओज कवि)
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राष्ट्रवादिता की आन वंदे मातरम,
राष्ट्रवादिता की शान वंदे मातरम।
राष्ट्रवादिता की शान वंदे मातरम,
राष्ट्रवादिता की खान वंदे मातरम।
राष्ट्रीयता का सारा मान वंदे मातरम,
पूरे राष्ट्र का ये गान वंदे मातरम।
अब मिट जाए या फिर लुट जाए हम,
मरते दम तक गायेंगे हम वंदे मातरम।
वंदे मातरम देश की है आत्मा,
वंदे मातरम गीत है देवात्मा।
वंदे मातरम गा रही जीवात्मा,
वंदे मातरम बोला बापू महात्मा।
इसे गाकर अशफाक फांसी पर झूले,
इसे गाकर भारत समाता न फूले।
इसलिए हमने यह खाई है कसम,
मरते दम तक जाएंगे हम वंदे मातरम।
शहीदों की हुंकार है वंदे मातरम,
भारतीयों का गीत है वंदे मातरम।
भारत का मस्तक है वंदे मातरम,
देश का मुकुट भी है वंदे मातरम।
भारती का अभिनंदन वंदे मातरम,
जय हो मां भारती की वंदे मातरम।
भारत की माटी का है यही स्वागतम,
मरते दम तक गायेंगे हम वंदे मातरम।
मनोज मंजुल (ओज कवि )
जिला कासगंज , उत्तर प्रदेश
मोबाइल नंबर 94570 22318
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कविता बोरा
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"व्यक्तित्व का साक्षात्कार"
स्वयं को जीतने की अभिलाषा कर,
छूट जायेगा निरंतर एक दिन|
तम के अंधकार का विध्वंस कर,
सुपुनित मनोवृत्ति का संचार कर |
रणभूमि में खड़ा रह जीवन के,
यश अपयश की चिंता न कर|
बीते हुए का शोक न कर,
क्या होगा विलाप न कर |
जीवन संग्राम में रुकना नहीं, झुकना, नहीं,
वास्तविकता की पहचान कर|
संसार का सार देख, स्वयं का परिचय स्वयं से कर ,
जीते जी मृत के समान व्यव्हार न कर|
माटी देह में ईमान का प्राण भर
अफवाह नहीं हकीकत को तलाश कर,
चल उठ अधिक न विलाप कर ,
कर्तव्य पथ पर कैसा शोक?
आत्म प्रकाश प्रज्वलित कर ,
हृदय मंथन कर प्रतिपल|
सूर्य समान स्वयं को नवपुंज में प्रज्वलित कर ,
वैभव का अधिक मान न कर|
सज्जनता का अपमान न कर,
कर्म कर सही मगर शब्दों की गरिमा पार न कर|
दिखावे, बनावट से नहीं,
मानव की पहचान मानवता से कर|
स्वयं का युद्ध स्वयं से कर, जीत ले स्वयं को,
सच्चिदानन्द से मिला वरदान|
जीवन पथ पर निडर अनुगमन कर ,
संघर्ष के पथपृष्ठ गढ़, चल उठ अधिक न विलाप कर .....।
कविता बोरा
पिथौरागढ़, उत्तराखंड
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प्रियंका हर्बोला
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भिक्षा-पात्र
यदि प्रेम भीख स्वरूप मिल रहा हो तो समझ लेना सामने वाले ने आपके हृदय का समंदर नहीं देखा बल्कि एक भिक्षा पात्र देखा है। जो हृदय नहीं देख सका, उसकी दी कौड़ियों को मुट्ठी में दबाए कितने मील चलेंगे आप और किस मंदिर के किस ईश के चरणों में उसे रख, आप माँग लेंगे उसे? और क्यों? जिसको समंदर दिखना होगा, वो पहले ही एक सिक्का रख आया होगा आपके नाम का। ईश्वर तथास्तु कह भी देंगे। बेफिक्र जियें। प्रेम समंदर बनके लौटेगा। किसी समंदर को कोई समंदर दिखेगा-भिक्षा पात्र नहीं।
-प्रियंका हर्बोला✍️
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