The creative novels PART- 1 (सपनों का सागर)
"सपनों का सागर"
आजकल के ज़माने में किसी के पास समय नहीं होता। समय के साथ हम भी अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं। लेकिन जब कभी भी हम अपनी पुरानी यादों में खो जाते हैं, तो हमें लगता है कि हम कहीं खो गए हैं, लेकिन सच तो यह है कि हम वही हैं, जो कभी थे। यही कहानी है एक ऐसे लड़के की, जिसका नाम अजय था।
अजय एक छोटे से गाँव में रहता था। गाँव की हवाओं में एक अजीब सा खुमार था, जो हर किसी को अपने में समाहित कर लेता। यह गाँव न तो बहुत समृद्ध था, और न ही बहुत पिछड़ा, लेकिन यहाँ के लोग एक-दूसरे से सच्चे और सीधे दिल से जुड़े थे। अजय का दिल भी वैसा ही था – सच्चा और बिना किसी छल-कपट के।
अजय की सबसे बड़ी कमजोरी थी उसका सपनों में खो जाना। वह दिन-रात अपनी कल्पनाओं में खोया रहता था। उसे लगता था कि इस छोटे से गाँव के बाहर एक विशाल दुनिया है, जहाँ न कोई डर है और न कोई चिंता। वह बार-बार सोचता, "क्या होगा अगर मैं अपनी कल्पनाओं को हकीकत बना सकूं?"
गाँव में एक पुराना तालाब था। अजय अक्सर वहीं बैठा करता था और घंटों तक उस पानी की लहरों को देखता रहता। उसे लगता, जैसे उस पानी में कुछ छिपा है, कोई रहस्य, जो सिर्फ उसे ही जानना है। वह सोचता था, "क्या ऐसा कोई जादुई संसार है, जहाँ मैं अपनी कल्पनाओं को सच कर सकता हूँ?"
एक दिन, अजय ने तय किया कि वह इस तालाब के गहरे पानी में डुबकी लगाएगा। यह कोई सामान्य निर्णय नहीं था। अजय को लगता था कि वह अब तक जिस तरह अपनी दुनिया में खोया रहा, अब वह हकीकत से परिचित होना चाहता था। वह जानता था कि अगर वह सच में अपनी कल्पनाओं को वास्तविकता में बदलना चाहता है, तो उसे कुछ बड़ा करना होगा।
अजय ने तालाब के किनारे पर बैठ कर अपने पैरों को पानी में डुबो दिया। तालाब की गहरी शांति उसे एक अजीब सा सुकून दे रही थी। अचानक, तालाब के पानी में एक हलचल हुई। अजय ने आँखें मिचमिचाई, और देखा कि तालाब में से एक जलपरी उभर कर बाहर आई। वह जलपरी हरी-भरी थी, और उसकी आँखों में एक गहरी चमक थी।
"तुम कौन हो?" अजय ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
"मैं तुम्हारी कल्पनाओं का रूप हूँ," जलपरी ने कहा। "तुम्हारे सपने और इच्छाएँ मुझे यहाँ लाती हैं। तुम अकेले नहीं हो, अजय। तुम्हारी इच्छाएँ तुम्हारे साथ हैं।"
अजय की आँखों में विश्वास और संदेह का मिला-जुला भाव था। "क्या तुम सच में मेरी मदद कर सकती हो?" उसने पूछा।
जलपरी मुस्कराई और बोली, "मैं तुम्हारे सपनों को साकार कर सकती हूँ, लेकिन इसके बदले तुम्हें कुछ देना होगा।"
अजय ने गहरी साँस ली। "क्या देना होगा?" उसने पूछा।
"तुम्हें अपनी सच्चाई पहचाननी होगी। तुम्हें यह समझना होगा कि सपने तभी सच्चे होते हैं, जब उन्हें अपनी मेहनत से साकार किया जाए।" जलपरी ने कहा। "तुम्हारा सपना केवल कल्पना में नहीं रह सकता। तुम्हें अपनी पूरी शक्ति से उसे जीना होगा।"
अजय ने सोचा, और फिर उसकी आँखों में एक नई उम्मीद चमकी। "मैं तैयार हूँ।"
जलपरी ने अपनी चमकदार हरी पूँछ हिलाई और तालाब का पानी चमकने लगा। अचानक, एक शानदार पुल तालाब के ऊपर से उभर आया, जो एक विशाल समंदर के किनारे तक जाता था।
"यह है तुम्हारा सपना," जलपरी ने कहा। "अब तुम्हें इस पुल को पार करना होगा। यह तुम्हारी यात्रा का पहला कदम होगा।"
अजय ने घबराए बिना पुल की ओर कदम बढ़ाए। वह जानता था कि यह कोई आसान रास्ता नहीं होगा, लेकिन वह तय कर चुका था कि वह अपने सपनों की दुनिया को साकार करेगा।
पुल के पार जाते हुए उसे कई कठिनाइयाँ आईं। कभी तेज हवाएँ, कभी तूफानी लहरें, और कभी-कभी तो उसे लगता कि वह गिर जाएगा। लेकिन हर बार उसने खुद को सँभाला और आगे बढ़ा। उसकी मेहनत, उसका संघर्ष, और उसकी उम्मीदें उसे मजबूत बनाए रखतीं।
अंततः, वह उस समंदर के किनारे पहुँचा। वहाँ एक अद्भुत दुनिया थी – एक दुनिया जहाँ हर आदमी अपनी कल्पनाओं को सच कर सकता था। यहाँ हर रास्ता, हर पेड़, और हर पल उसकी मेहनत का परिणाम था। अजय को समझ में आ गया कि यह समंदर उसकी मेहनत और दृढ़ता का प्रतीक था।
जलपरी उसके पास आई और बोली, "तुमने अपनी यात्रा पूरी की, अजय। तुम्हें अब यह समझ आ गया है कि कोई भी सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक हम उसे अपनी मेहनत और संघर्ष से पूरा न करें।"
अजय मुस्कराया और बोला, "मैंने यह समझ लिया। अब मैं अपनी दुनिया को खुद बनाएँगा।"
वह समझ चुका था कि सपने केवल कल्पनाओं में नहीं रहते, बल्कि जब हम उन्हें अपनी मेहनत और साहस से जीते हैं, तो वे हकीकत बन जाते हैं।
इस प्रकार, अजय ने अपनी यात्रा पूरी की और एक नई दुनिया की ओर कदम बढ़ाया, जहाँ उसने अपनी कल्पनाओं को साकार किया और अपनी असल दुनिया को भी बदला।
आशुतोष प्रताप "यदुवंशी"
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